आधुनिकीकरण के रास्ते


चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना : 1949 में हुई |

 

चीन में छींग राजवंश का अंत : 1644 से 1911 तक चीन में छींग राजवंश का शासन था | 19 वीं सदी के शुरुआत में चीन का पूर्वी एशिया पर प्रभुत्व था | यहाँ छींग राजवंश का शासन था | कुछ ही दशकों के भीतर चीन अशांति की गिरफ्त में आ गया और औपनिवेशिक चुनौती का सामना नहीं कर पाया | छींग राजवंश कारगर सुधार करने में असफल रहा और देश गृहयुद्ध की लपटों में आ गया, और छींग राजवंश के हाथों से राजनितिक नियंत्रण चला गया |

 

19 वीं सदी में जापान में औद्योगिक अर्थतंत्र की रचना : 18 वीं सदी के अंत और 19 वीं सदी के शुरुआत में जापान ने अन्य एशियाई देशों की तुलना में काफी  अधिक प्रगति की |
(i) जापान एक आधुनिक राष्ट्र-राज्य के निर्माण में, औद्योगिक अर्थतंत्र की रचना में चीन को काफी पीछे छोड़ दिया |
(ii) ताइवान (1895) तथा कोरिया (1910) को अपने में मिलाते हुए एक औपनिवेशिक साम्राज्य कायम करने में सफल रहा।
(iii) उसने अपनी संस्कृति और अपने आदर्शों की स्रोत-भूमि चीन को 1894 में हराया और 1905 में रूस जैसी यूरोपीय शक्ति को पराजित करने में कामयाब रहा।

 

चीन और जापान के भौगोलिक स्थिति में अंतर :

चीन जापान
चीन एक विशालकाय महाद्वीप देश है | जापान एक द्वीप श्रृंखला वाला देश है |
यहाँ की जलवायु में विविधता पाई जाती है | इसमें चार मुख्य द्वीप शामिल हैं, मुख्य द्वीपों की 50 प्रतिशत से अधिक जमीन पहाड़ी है |
यहाँ कई राष्ट्रिय भाषाएँ हैं | यहाँ की प्रमुख भाषा जापानी है |
खानों में क्षेत्रीय विविधता पाई जाती है | जापान बहुत ही सक्रीय भूकंप क्षेत्र में है |

 

 

आधुनिक दुनियाँ में धीमी चीनी प्रतिक्रिया : जापान के समक्ष देखा जाय या अन्य यूरोपीय देशों को के साथ तुलना की जाए तो चीनी प्रतिक्रिया धीमी रही और उनके सामने कई कठिनाइयाँ आईं |
(i) आधुनिक दुनिया का सामना करने के लिए उन्होंने अपनी परंपराओं को पुनः परिभाषित करने का प्रयास किया।
(ii) अपनी राष्ट्र-शक्ति का पुनर्निर्माण करने और पश्चिमी व जापानी नियंत्रण से मुक्त होने की कोशिश की।
(iii) उन्होंने पाया कि असमानताओं को हटाने और अपने देश के पुनर्निर्माण के दुहरे मकसद को वे क्रांति के जरिए ही हासिल कर सकते हैं।

 

जापान का आधुनिकीकरण : जापान का आधुनिकीकरण का सफर पूँजीवाद के सिद्धांतों पर आधारित था और यह सफर उसने ऐसी दुनिया में तय किया, जहाँ पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रभुत्व था। दूसरे देशों में जापान के विस्तार को पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध करने और एशिया को आजाद कराने की माँग के आधार पर उचित ठहराया गया। जापान में जिस तेजी से विकास हुआ वह जापानी संस्थाओं और समाज में परंपरा की सुदृढ़ता, उनकी सीखने की शक्ति और राष्ट्रवाद की ताकत को दर्शाता है।

 

चीन की तीन प्रमुख नदियाँ :
(i) पीली नदी (हुआंग हे),
(ii) यांग्त्सी नदी (छांग जिआंग - दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी नदी)
(iii) पर्ल नदी |

 

चीन की प्रमुख जातीय समूह : हान सबसे प्रमुख जातीय समूह है |

 

चीन की भाषा एवं बोलियाँ : चीन की प्रमुख भाषा चीनी है और भी कई राष्ट्रीयताएँ हैं - जैसे उइघुर, हुई, मांचू और तिब्बती | कैंटनीज कैंटन (गुआंगजाओ) की बोली-उए और शंघाईनीज (शंघाई की बोली-वू) जैसी बोलियों के आलावा कई अल्पसंख्यक भाषाएँ भी बोली जाती हैं |

 

चीन की भोजन : जाना-माना डिम सम एक चायनीज भोजन है जिसका शाब्दिक अर्थ दिल को छूना यह यहीं का खाना है जो गुंथे हुए आटे को सब्जी आदि भरकर उबाल कर बनाए गए व्यंजन जैसा है। उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है, जबकि शेचुआँ (Szechuan) में प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग के जरिए पंद्रहवीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा लाई गई मिर्च के चलते खासा झालदार और तीखा खाना मिलता है। पूर्वी चीन में चावल और गेहूँ, दोनों खाए जाते हैं।

 

जापान का खानपान : जापान में पशुपालन की परंपरा नहीं है। चावल बुनियादी फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत। कच्ची मछली साशिमी या सूशी अब दुनिया भर में बहुत लोकप्रिय हो गई है क्योंकि इसे बहुत सेहतमंद माना जाता है।

 

जापान के चार प्रमुख द्वीपों का नाम : (i) होंशू, (ii) क्यूशू, (iii) शिकोकू तथा (iv) होकाईदो

 

जापान में अर्थव्यस्था का आधुनिकीकरण :
(i) जापान में अर्थव्यस्था के आधुनिकीकरण के लिए कृषि पर कर लगाकर धन इकठ्ठा किया गया |
(ii) यहाँ पर तेजी से रेल लाइनों का विकास किया गया |
(iii) वस्त्र उद्योग में मशीनों का प्रयोग हुआ |
(iv) मजदूरों को प्रशिक्षण दिया गया |
(v) आधुनिक बैंकिंग सस्थाओं की शुरुआत हुई |

 

16वीं शताब्दी के अंतिम भाग में जापान में हुए तीन परिवर्तनों की विकास की तैयारी में भूमिका :
(1) किसानों से हथियार ले लिए गए, और अब केवल सामुराई तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति और व्यवस्था बनी रही जबकि पिछली शताब्दी में इस वजह से अक्सर लड़ाइयाँ होती रहती थीं।
(2) दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए और उन्हें काफी हद तक स्वायत्तता प्रदान की गई।
(3) मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए ज़मीन का सर्वेक्षण किया गया तथा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया। इन सबका मिलाजुला मकसद राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।

 

जापान में छपाई और पढने का महत्व : जापान में लोगों को पढ़ने का बहुत शौक था | यहाँ होनहार लेखक केवल लेखनी के काम से ही अपनी जीविका चला सकते थे | एदो शहर में लोग नुडल की कटोरी की कीमत पर किताब किराये पर ले सकते थे |

 

जापान का चीन और भारत से आयात : जापान अमीर देश समझा जाता था, क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़ा जैसी विलासी वस्तुएँ आयात करता था। इन आयातों के लिए चाँदी और सोने में कीमत अदा करने से अर्थव्यवस्था पर भार ज़रूर पड़ा जिसकी वजह से तोकुगावा ने कीमती धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी। उन्होंने क्योतो के निशिजिन (एक बस्ती) में रेशम उद्योग के विकास के लिए भी कदम उठाये जिससे रेशम का आयात कम किया जा सके । निशिजिन का रेशम दुनिया भर में बेहतरीन रेशम माना जाने लगा। मुद्रा का बढ़ता इस्तेमाल और चावल के शेयर बाजार का निर्माण जैसे अन्य विकास दिखाते हैं कि अर्थतंत्र नयी दिशाओं में विकसित हो रहा था।

 

निशिजिन रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध : निशिजिन क्योतो की एक बस्ती है। जो रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध था | 16 वीं शताब्दी में वहाँ 31 परिवारों का बुनकर संघ था। 17वीं शताब्दी के आखिर तक इस समुदाय में 70,000 लोग थे। रेशम उत्पादन फैला और 1713 में केवल देशी धागा इस्तेमाल करने के आदेश जारी किए गए जिससे उसे और प्रोत्साहन मिला। इस शहर की निम्न विशेषताएँ थी -
(i) निशिजिन में केवल विशिष्ट प्रकार के महंगे उत्पाद बनाए जाते थे। यहाँ रेशम उत्पादन से ऐसे क्षेत्रीय उद्यमी वर्ग का विस्तार हुआ जिन्होंने आगे चलकर तोकूगावा व्यवस्था को चुनौती दी।
(ii) जब 1859 में विदेशी व्यापार की शुरुआत हुई, जापान से रेशम का निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए मुनाफे का प्रमुख स्रोत बन गया, एक ऐसे समय में जबकि जापानी अर्थव्यवस्था पश्चिमी वस्तुओं से मुकाबला करने की कोशिश कर रही थी।

 

मुरासाकी शिकिबु : ये एक जापानी लेखिका थी जिन्होंने अपनी लेखनी के लिए जापानी लिपि का इस्तेमाल किया | जबकि पुरुषों ने चीनी लिपि का | इन्होने हेआन राजदरबार की एक काल्पनिक डायरी "दि टेल ऑफ दि गेंजी" लिखी थी | यह जापानी साहित्य में काफी प्रचलित थी |

 

मेजी पुनर्स्थापना : मेजी पुनर्स्थापना का अर्थ है, प्रबुद्ध सरकार का गठन | सन 1867-68 के दौरान मेजी वंश का उदय हुआ और देश में विद्यमान विभिन्न प्रकार का असंतोष मेजियों की पुनर्स्थापना का कारण बना |

 

मेजियों के पुनर्स्थापना के पीछे कारण :
(i) देश में तरह-तरह का असंतोष था |
(ii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व कूटनीतिक संबंधों की भी माँग की जा रही थी।


मेजी शासन के अंतर्गत जापान में अर्थव्यवस्था का आधुनिकरण :
(i) कृषि पर कर
(ii) जापान में रेल लाइन बिछाना
(iii) वस्त्र उद्योगों के लिए मशीनों का आयात
(iv) मजदूरों का विदेशी कारीगरों द्वारा प्रशिक्षण
(v) विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए विदेश भेजना
(vi) आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था का प्रारंम्भ
(vii) कंपनियों को कर में छुट और सब्सिडी देना

 

जापान में मेजियों द्वारा शिक्षा एवं विद्यालयी व्यवस्था में बदलाव :
(i) लडके और लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य |
(ii) पढाई की फ़ीस बहुत कम करना |
(iii) आधुनिक विचारों पर जोर देना |
(iv) राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर बल दिया गया |
(iv) किताबों के चयन और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर नियंत्रण |
(v) माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति वफ़ादारी और अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी गई |

 

एदो शहर का नामकरण : मेजी शासन स्थापित होते ही एदो शहर को राजधानी बनाया गया और इसका नया नामकरण हुआ "तोक्यों"|

 

मेजी सरकार की नयी निति :
(i) "समृद्ध देश, मजबूत सेना" का नया नारा दिया गया |
(ii) अर्थव्यवस्था का विकास और मज़बूत सेना का निर्माण करने की ज़रूरत पर बल दिया |
(iii) जनता के बीच राष्ट्र की भावना का निर्माण करने और प्रजा को नागरिक की श्रेणी में बदलने के लिए कार्य किया ।
(iv) नयी सरकार ने ‘सम्राट-व्यवस्था’ के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया।
(v) राजतांत्रिक व्यवस्था के नमूनों को समझने के लिए कुछ अधिकारीयों को यूरोप भेजा गया।
(vi) सम्राट के नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के अधिनियम जारी किए गए |
(vii) जनता के सार्वजनिक एवं साझे हितों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया।

 

जापानी भाषा में तीन लिपियों का उपयोग : जापानी भाषा एक साथ तीन लिपियों का प्रयोग करती है। इनमें से एक कांजी, जापानियों ने चीनियों से छठी शताब्दी में ली। चूँकि उनकी भाषा चीनी भाषा से बहुत अलग है, उन्होंने दो ध्वन्यात्मक वर्णमालाओं का विकास भी किया- हीरागाना और कताकाना। हीरागाना नारी सुलभ समझी जाती है क्योंकि हेआन काल में बहुत सी लेखिकाएँ इसका इस्तेमाल करती थीं | जैसे कि मुरासाकी। यह चीनी चित्रात्मक चिह्नों और ध्वन्यात्मक अक्षरों (हीरागाना अथवा कताकाना) को मिलाकर लिखी जाती है। शब्द का प्रमुख भाग कांजी के चिन्ह से लिखा जाता है और बाकी का हीरागाना में।

 

राष्ट्र के एकीकरण के लिए जापान सरकार द्वारा किया गया कार्य :
(i) मेजी सरकार ने पुराने गाँवों और क्षेत्रीय सीमाओं को बदल कर नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया।
(ii) 20 साल से अधिक उम्र के नौजवानों के लिए कुछ अरसे के लिए सेना में काम करना अनिवार्य हो गया।
(iii) एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया। कानून व्यवस्था बनाई गई जो राजनीतिक गुटों के गठन को देख सके, बैठके बुलाने पर नियंत्रण रख सके, और सख्त सेंसर व्यवस्था बना सके |
(iv) सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के निर्देश में रखा गया। यानि कि संविधान बनने के बावजूद यह दो गुट सरकारी नियंत्रण के बाहर रहे।
(v) लोकतांत्रिक संविधान और आधुनिक सेना - इन दो अलग आदर्शों को महत्व देने के दूरगामी नतीजे हुए।

 

पर्यावरण पर उद्योगों के विकास का प्रभाव :
(i) उद्योग के तेज़ और अनियंत्रित विकास और लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ।
(ii) औद्योगिक प्रदुषण बढ़ने से वायु प्रदुषण और जल प्रदुषण बढ़ा |
(iii) कृषि उत्पादों में कमी का प्रमुख कारण लोगों का शहरों की ओर पलायन |

 

औद्योगिक प्रदुषण के खिलाफ आन्दोलन : संसद के पहले निम्न सदन के सदस्य तनाको शोजो (Tanaka Shozo) ने 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ पहला आंदोलन छेड़ा जब 800 गाँववासी जन विरोध में इक्कठे हुए और उन्होंने सरकार को कार्रवाई करने के लिए मज़बूर किया।

 

मेजी संविधान समिति की विशेषताएँ :
(i) मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था |
(ii) उसने डायट बनाई जिसके अधिकार सीमित थे |
(iii) शाही पुनःस्थापना करनेवाले नेता सत्ता में बने रहे और उन्होंने राजनीतिक पार्टियों का गठन किया।
(iv) 1918 और 1931 के दरमियान जनमत से चुने गए प्रधानमंत्रियों ने मंत्रिपरिषद् बनाए।
(v) उन्होंने आक्रामक राष्ट्रवाद की निति अपनाई |

 

तनाका शोजो और प्रदूषक के खिलाफ आन्दोलन में भूमिका : तनाका शोजो (1841-1913) एक किसान के बेटे थे उन्होंने ने अपनी पढ़ाई खुद की और एक मुख्य राजनैतिक हस्ती के रूप में उभरे। 1880 के दशक में उन्होंने जनवादी हकों के आंदोलन में हिस्सा लिया। इस आंदोलन ने संवैधानिक सरकार की माँग की। वह पहली संसद-डायट-में सदस्य चुने गए। उनका मानना था कि औद्योगिक प्रगति के लिए आम लोगों की बलि नहीं दी जानी चाहिए।

 

आधुनिक राष्ट्र बनने के लिए जापान और चीन की अलग-अलग राहें : आधुनिक राष्ट्र बनने के लिए जापान और चीन निम्न नीतियाँ थी |

 

जापान के आधुनिक समाज में आए बदलाव :
(i) वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त और ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं।
(ii) व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे।
(iii) शहरों में जीवंत संस्कृति खिलने लगी जहाँ तेजी से बढ़ते व्यापारी वर्ग ने नाटक और कलाओं को प्रोत्साहन दिया।
(iv) लोगों को पढ़ने का शौक था, एदो में लोग नूडल की कटोरी की कीमत पर किताब किराये पर ले सकते थे।

 

फुकुजावा यूकिची : इनका जन्म एक गरीब सामुराई परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा नागासाकी और ओसाका में हुई। इन्होंने डच और पश्चिमी विज्ञान पढ़ा और बाद में अंग्रेजी भी। 1860 में वे अमरीका में पहले जापानी दूतावास में अनुवादक के रूप में गए। इससे इन्हें पश्चिम पर किताब लिखने के लिए बहुत कुछ मिला। उन्होंने अपने विचार क्लासिकी नहीं बल्कि बोलने चालने के अंदाज  लिखे। यह किताब बहुत ही लोकप्रिय हुई। इन्होंने एक शिक्षा संस्थान स्थापित किया जो आज केओ विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

 

फुकुजावा यूकिची (Fukuzawa Yukichi) के विचार : फुकुजावा यूकिची मेजी काल के प्रमुख बुद्धिजीवी थे जो अमरीका और पश्चिमी यूरोपीय देशों से प्रभावित थे | उनका कहना था कि जापान को ‘अपने में से एशिया को निकाल फेंकना’ चाहिए। यानि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़ देने चाहिए और पश्चिम का हिस्सा बन जाना चाहिए।

 

पश्चिम से प्रभावित कुछ जापानी बुद्धिजीवियों के विचार :
(i) फुकुजावा यूकिची का विचार था कि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़ देने चाहिए और पश्चिम का हिस्सा बन जाना चाहिए।
(ii) दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सुरे का कहना था कि विश्व सभ्यता के हित में हर राष्ट्र को अपने खास हुनर का विकास करना चाहिए।
(iii) बहुत से बुद्धिजीवी पश्चिमी उदारवाद की तरफ आकर्षित थे और वे चाहते थे कि जापान अपना आधार सेना की बजाय लोकतंत्र पर बनाए।
(iv) संवैधानिक सरकार की माँग करने वाले जनवादी अधिकारों के आंदोलन के नेता उएकी एमोरी  फ़्रांसिसी क्रांति में मानवों के प्राकृतिक अधिकार और जन प्रभुसत्ता के सिद्धांतों के प्रशंसक थे।

 

मेजों सरकार द्वारा संविधान की घोषणा : जापान के बहुत से प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों ने अपने विचारों से सरकार के ऊपर दबाव डाला | कईयों ने तो आन्दोलन खड़े कर दिए जिसमें से प्रमुख थे उएकी एमोरी जिन्होंने संवैधानिक सरकार की माँग की थी | वे उदारवादी शिक्षा के पक्ष में थे जो प्रत्येक व्यक्ति को विकसित कर सके: ‘व्यवस्था से ज़्यादा कीमती चीज है, आज़ादी’। कुछ दुसरे लोगों ने तो महिलाओं के मताधिकार की भी सिफारिश की। इस दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने पर बाध्य किया।

 

रोजमर्रा के जिंदगी में आए बदलाव :
(i) पैतृक परिवार व्यवस्था में कई पीढि़याँ परिवार के मुखिया के नियंत्रण में रहती थीं।
(ii) पति-पत्नी साथ रह कर कमाते और घर बसाते थे।
(iii) पारिवारिक जीवन की इस नयी समझ ने नए तरह के घरेलू उत्पादों, नए किस्म के पारिवारिक मनोरंजन और नए प्रकार के घर की माँग पैदा की।
(iv) 1920 के दशक में निर्माण कम्पनियों ने शुरू में 200 येन देने के बाद लगातार 10 साल के लिए 12 येन माहवार की किश्तों पर लोगों को सस्ते मकान मुहैया कराये- यह एक ऐसे समय में जब एक बैंक कर्मचारी (उच्च शिक्षाप्राप्त व्यक्ति) की तनख्वाह 40 येन प्रतिमाह थी।

 

जापान में सता केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा : सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद 1930 - 1940 के दौरान बढ़ावा मिला जब जापान ने चीन और एशिया में अपने उपनिवेश बढ़ाने के लिए लड़ाइयाँ छेड़ीं। ये लड़ाइयाँ दूसरे विश्व युद्ध में जाकर मिल गईं जब जापान ने अमरीका के पर्ल हार्बर पर हमला किया।

 

निशितानी केजी द्वारा आधुनिक शब्द की परिभाषा : दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने ‘आधुनिक’ को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित कियाः (i) पुनर्जागरण, (ii) प्रोटैस्टेंट सुधार, और (iii) प्राकृतिक विज्ञानों का विकास । उन्होंने कहा कि जापान की ‘नैतिक ऊर्जा’ (यह शब्द जर्मन दर्शनशास्त्री राके से लिया गया है) ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया और जापान का फ़र्ज़ बनता है एक नयी विश्व पद्धति, एक विशाल पूर्वी एशिया के निर्माण का। इसके लिए एक नयी सोच की ज़रूरत है जो विज्ञान और धर्म को जोड़ सके।

 

आधुनिकता पर विजय संगोष्ठी : 1943 में "आधुनिकता पर विजय" विषय पर एक संगोष्ठी हुई | इसमें जापान के सामने जो दुविधा थी उस पर चर्चा हुई, यानि आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर कैसे विजय पाई जाए।

 

द्वितीय विश्वयुद्ध में हार के बाद जापान में हुए परिवर्तन :
(i) जापान का विसैन्यीकरण कर दिया गया और एक नया संविधान लागू हुआ।
(ii) कृषि सुधार, व्यापारिक संगठनों का पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में जायबात्सु यानि बड़ी एकाधिकार कंपनियों की पकड़ को खत्म करने की भी कोशिश की गई।
(iii) राजनीतिक पार्टियों को पुनर्जीवित किया गया और जंग के बाद पहले चुनाव 1946 में हुए। इसमें पहली बार महिलाओं ने भी मतदान किया।
(iv) अपनी भयंकर हार के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का जिस तेजी से पुनर्निर्माण हुआ, उसे एक युद्धोत्तर ‘चमत्कार’ कहा गया है।

 

भयंकर हार के बावजूद जापान ने तेजी से आर्थिक प्रगति की (कारण):  अपनी भयंकर हार के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का जिस तेजी से पुनर्निर्माण हुआ, उसे एक युद्धोत्तर ‘चमत्कार’ कहा गया है। लेकिन यह चमत्कार से कहीं अधिक था और इसकी जड़ें जापान के लंबे इतिहास में निहित थीं। संविधान को औपचारिक स्तर पर गणतांत्रिक रूप इसी समय दिया गया। लेकिन जापान में जनवादी आंदोलन और राजनीतिक भागेदारी का आधार बढ़ाने में बौद्धिक सक्रियता की ऐतिहासिक परंपरा रही है। युद्ध से पहले के काल की सामाजिक संबद्धता को गणतांत्रिक रूपरेखा के बीच सुदृढ़ किया गया। इसके चलते सरकार, नौकरशाही और उद्योग के बीच एक करीबी रिश्ता कायम हुआ। अमरीकी समर्थन और साथ ही कोरिया और वियतनाम में जंग से जापानी अर्थव्यवस्था को मदद मिली।

 

1960 के दशक में जापान द्वारा प्रौद्योगिक और अर्थव्यस्था की दो उपलब्धियाँ :
(i) 1964 में तोक्यों में हुए ओलम्पिक खेलों का आयोजन
(ii) 200 मील प्रति घंटे चलने वाली बुलेट ट्रेन जो की एक बेहतर और सस्ता उत्पाद था |

 
चीन

 

चीनी बहसों में तीन समूहों के नजरिए :
(i) कांग योवेल (1858-1927) या लियांग किचाऊ (1873-1929) |
(ii) गणतंत्र के दुसरे राष्ट्राध्यक्ष सन यान-सेन |
(iii) चीन की कम्युनिस्ट पार्टी |

 

आधुनिक चीन की शुरुआत : आधुनिक चीन की शुरुआत सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में पश्चिम के साथ उसका पहला सामना होने के समय से माना जाता है |
जेसुइट मिशनरियाँ : जेसुइट मिशनरियों ने चीन में खगोल विद्या और गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को वहाँ पहुँचाया |
पहला अफीम युद्ध : पहला अफीम युद्ध ब्रिटेन और चीन के बीच (1839-1942) हुआ | इस युद्ध में ब्रिटेन ने अफीम के फायदेमंद व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बलों का इस्तेमाल किया |

 

पहला अफीम युद्ध का परिणाम :
(i) इस युद्ध ने सताधारी क्विंग राजवंश को कमजोर किया |
(ii) सुधार तथा बदलाव के माँगों को मजबूती दी |

 

क्विंग सुधारक और उनके द्वारा किए गए कार्य :
(i) कांग युवेई और
(ii) लियांग किचाऊ को क्विंग सुधारक कहा जाता है |

 

इनके द्वारा किए गए प्रमुख सुधार निम्नलिखित है :-
(i) व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया और एक आधुनिक व्यवस्था दी |
(ii) नई सेना और शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाई |  
(iii) संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए स्थानीय विधायिकाओं का गठन किया |

 

उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों का चीनी विचारकों पर प्रभाव :
(i) 18वीं सदी में पोलैंड का बँटवारा सर्वाधिक बहुचर्चित उदाहरण था। यहाँ तक कि 1890 के दशक में पोलैंड शब्द का इस्तेमाल क्रिया के रूप में किया जाने लगा: बोलान वू का मतलब था, ‘हमें पोलेंड करने के लिए’।
(ii) भारत का उदाहरण भी सामने था। विचारक लियांग किचाउ का मानना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता लाकर ही चीन पश्चिम का विरोध कर पाएगा। 1903 में उन्होंने लिखा कि भारत एक ऐसा देश है, जो किसी और देश नहीं, बल्कि एक कंपनी के हाथों बर्बाद हो गया - ईस्ट इंडिया कंपनी के। वे ब्रितानिया की ताबेदारी करने और अपने लोगों के साथ क्रूर होने के लिए हिंदुस्तानियों की आलोचना करते थे। उनके तर्कों ने आम आदमी को खासा आकर्षित किया, क्योंकि चीनी देखते थे कि ब्रितानिया चीन के साथ युद्ध में भारतीय जवानों का इस्तेमाल करता है।

 

कन्फ्यूशियसवाद : चीनी विचारक कंफ्युशियस के विचारों को और उनके अनुयायियों की शिक्षा को कन्फ्यूशियसवाद कहते है |

 

कंफ्युशियस के विचार और उसके बाद आए परिवर्तन :
(i) अच्छे व्यवहार, व्यवहारिक समझादरी और उचित सामाजिक संबंधों के सिद्धांत पर आधारित था |
(ii) इनके विचारों ने चीनियों के जीवन के प्रति रवैया को प्रभावित किया |
(iii) सामाजिक मानक दिए और चीनी राजनितिक सोंच और संगठनों को आधार दिया |
(iv) लोगों को नये विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन और फ़्रांस में पढ़ने भेजा गया ताकि वे नये विचार सीख कर वापस आएँ।
(v) रूसी-जापानी युद्ध के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा-प्रणाली समाप्त कर दी गई, जो प्रत्याशियों को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में दाखिला दिलाने का काम करती थी।

 

मांचू साम्राज्य का अंत और गणतंत्र की स्थापना : 1911 में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और सन यात-सेन (1866-1925) के नेतृत्व में गणतंत्रा की स्थापना की गई।

 

सन यात-सेन : वे निर्विवाद रूप से आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं। उन्ही न के नेतृत्व में चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई | वे एक गरीब परिवार से थे और उन्होंने मिशन स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र और ईसाई धर्म से हुआ। उन्होंने डाक्टरी की पढ़ाई की लेकिन वे चीन के भविष्य को लेकर चिंतित थे |

 

सन यात-सेन के तीन सिद्धांत : सन यात-सेन का कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से मशहूर है। ये तीन सिद्धांत हैं:
(i) राष्ट्रवाद - इसका अर्थ था मांचू वंश - जिसे विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था - को सत्ता से हटाना, साथ ही अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना
(ii) गणतंत्र या गणतांत्रिक सरकार की स्थापना करना और
(iii) समाजवाद - जो पूँजी का नियमन करे और भूस्वामित्व में बराबरी लाए।

 

1919 में हुए बीजिंग आन्दोलन में क्रांतिकारियों की माँगे : 4 मई 1919 में बीजिंग में युद्धोत्तर शांति सम्मेलन के निर्णय के विरोध में एक धुआँधार प्रदर्शन हुआ। हालांकि चीन ब्रितानिया के नेतृत्व में हुई जीत में विजयी देशों का सहयोगी था, पर उससे हथिया लिए गए उसके इलाके वापस नहीं मिले थे। यह विरोध आंदोलन में तब्दील हो गया।

 

क्रांतिकारियों की माँगे निम्नलिखित थी -
(i) चीन को आधुनिक विज्ञान, लोकतंत्र और राष्ट्रवाद के जरिए बचाने की माँग की गई।
(ii) देश के साधनों पर कब्ज़ा जमाए विदेशियों को भगाने, असमानताएँ हटाने और गरीबी कम करने का नारा दिया।
(iii) उन्होंने लेखन में एक ही भाषा का इस्तेमाल,
(iv) पैरों को बाँधने की प्रथा और औरतों की अधीनस्थता के खात्मे,
(v) शादी में बराबरी और गरीबी खत्म करने के लिए आर्थिक विकास जैसे सुधारों की वकालत की।

 

गणतांत्रिक क्रांति के बाद चीन में दो पार्टियों का उदय :
(i) कुओमीनतांग (नेशनल पीपुल्स पार्टी) और
(ii) चीनी कम्युनिस्ट पार्टी

 

चियांग काइशेक (Chiang Kaishek, 1887&1975) : सन यात-सेन की मृत्यु के बाद चियांग काइशेक कूओमीनतांग के नेता बनकर उभरे और उन्होंने सैन्य अभियान के जरिए वारलार्ड्स ( एक स्थानीय नेता जिन्होंने सत्ता छीन ली थी) अपने नियंत्रण में किया और साम्यवादियों को खत्म कर डाला। उन्होंने सेक्युलर और विवेकपूर्ण ‘इहलौकिक’ कन्पूफशियसवाद की हिमायत की |

 

चियांग काइशेक द्वारा किए गए सुधार :
(i) राष्ट्र का सैन्यकरण करने की भी कोशिश की।
(ii) उन्होंने कहा कि लोगों को ‘ एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत’ का विकास करना चाहिए।
(iii) उन्होंने महिलाओं को चार सद्गुण पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कियाः सतीत्व, रूप-रंग, वाणी और काम और उनकी भूमिका को घरेलू स्तर पर ही देखने पर जोर दिया।
(iv) यहाँ तक कि उनके कपड़ों की किनारियों की लंबाई भी प्रस्तावित की।

 

1919 में चीनी शहरों की स्थिति :
(i) औद्योगिक विकास धीमा और गिने चुने क्षेत्रों में था।
(ii) शंघाई जैसे शहरों में 1919 में औद्योगिक मज़दूर वर्ग उभर रहा था और इनकी संख्या 500,000 थी। लेकिन इनमें से केवल कुछ प्रतिशत मज़दूर ही जहाज निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में काम कर रहे थे।
(iii) ज़्यादातर लोग ‘नगण्य शहरी’ (शियाओ शिमिन), व्यापारी और दुकानदार होते थे। शहरी मज़दूरों, खासतौर से महिलाओं, को बहुत कम वेतन मिलता था।
(iv) काम करने के घंटे बहुत लंबे थे और काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब थी।

 

कुओमिनतांग के असफलता के कारण :
देश को एकीकृत करने की अपनी कोशिशों के बावजूद वुफओमीनतांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टि के चलते असपफल हो गया। जिसके पीछे अन्य कारण भी थे -
(i) सन यात-सेन के कार्यक्रम का बहुत अहम हिस्सा - पूँजी का नियमन और भूमि-अधिकारों में बराबरी लाना - कभी अमल में नहीं आया, |
(ii) पार्टी ने किसानों और बढ़ती सामाजिक असमानता की अनदेखी की।
(iii) इसने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय फौजी व्यवस्था थोपने का प्रयास किया।

 

चीन पर जापानियों के हमले का परिणाम :
(i) इस लंबे और थकाने वाले युद्ध ने चीन को कमजोर कर दिया।
(ii) 1945 और 1949 के दरमियान कीमतें 30 प्रतिशत प्रति महीने की रफ़्तार से बढ़ीं।
(iii) आम आदमी की जिंदगी तबाह हो गई।

 

ग्रामीण चीन में संकट :
चीन जापान युद्ध से ग्रामीण चीन में दो संकट उत्पन्न हुए -
(i) पर्यावरण संबंधी - जिसमें बंजर ज़मीन, वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे।
(ii) सामाजिक-आर्थिक - जो विनाशकारी ज़मीन-प्रथा, ऋण, आदिम प्रौद्योगिकी और निम्न स्तरीय संचार के कारण था।

 

चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना : 1921 में हुई |

 

माओ त्सेतुंग (1893-1976) : माओ त्सेतुंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख नेता थे | क्रांति के कार्यक्रम को किसानों पर आधारित करते हुए एक अलग रास्ता चुना। उनकी सफलता से चीनी साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत बनी जिसने अंततः कुओमीनतांग पर जीत हासिल की।

 

माओ त्सेतुंग के आमूलपरिवर्तनवादी तौर-तरीकें :
(i) 1928-1934 के बीच उन्होंने कुओमीनतांग के हमलों से सुरक्षित शिविर लगाए।
(ii) मज़बूत किसान परिषद (सोवियत) का गठन किया, ज़मीन पर कब्ज़ा और पुनर्वितरण के साथ एकीकरण हुआ।
(iii) दूसरे नेताओं से हटकर, माओ ने आजाद सरकार और सेना पर जोर दिया।
(iv) वे महिलाओं की समस्याओं से अवगत थे और उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को उभरने में उत्साहन दिया।
(v) उन्होंने शादी के नए कानून बनाए जिसमें आयोजित शादियों और शादी के समझौते खरीदने और बेचने पर रोक लगाई और तलाक को आसान बनाया।

 

माओ त्सेतुंग की लॉन्ग मार्च : कम्युनिस्टों की सोवियत की कुओ मीन तांग द्वारा नावेफबंदी ने पार्टी को दूसरा आधार ढूँढ़ने पर मज़बूर किया। इसके चलते उन्हें लाँग मार्च (1934-35) पर जाना पड़ा, जो कि शांग्सी तक 6000 मील का मुश्किल सफ़र था। नए अड्डे येनान में उन्होंने युद्ध सामंतवाद (Warlordism) को खत्म करने, भूमि सुधार लागू करने और विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। इससे उन्हें मज़बूत सामाजिक आधार मिला।

 

चीन की साम्यवादी दल और उनके समर्थकों द्वारा चीनी परम्पराओं को ख़त्म करना :
(i) उन्हें लगता था कि परंपरा जनसमुदाय को गरीबी में जकड़े हुए है,
(ii) महिलाओं को अधीन बनाती है और देश को अविकसित रखती है।

 

चियांग काइशेक द्वारा चीनी गणतंत्र की स्थापना : चीनी साम्यवादी दल द्वारा पराजित होने के बाद चियांग काई-शेक 30 करोड़ से अधिक अमरीकी डॉलर और बेशकीमती कलाकृतियाँ लेकर 1949 में ताइवान भाग निकले। वहाँ उन्होंने चीनी गणतंत्रा की स्थापना की।

 

 ताइवान चीन का ही एक भाग है परन्तु 1894-95 में जापान के साथ हुई लड़ाई में यह जगह चीन को जापान के हाथ में सौंपनी पड़ी थी और तब से वह जापानी उपनिवेश बना रहा |

 

ताइवान में लोकतंत्र की स्थापना : 1975 में चियांग काइशेक की मौत के बाद धीरे-धीरे शुरू हुआ और 1887 में जब फौजी कानून हटा लिया गया तथा विरोधी दलों को क़ानूनी इजाजत मिल गई, तब इस प्रक्रिया ने गति पकडी़ । पहले स्वतंत्र मतदान ने स्थानीय ताइवानियों को सत्ता में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।


Question


Question 1 :

मेजी संविधान कब पारित हुआ?


1. 1884 ई० में
2. 1872 ई० में
3. 1889 ई० में
4. 1842 ई० में
Answer
1301

Question 2 :

जापान में मेजी संविधान में सम्राट की स्थिति कैसी थी?


1. सर्वोच्च
2. सर्वश्रेष्ठ
3. सर्वोपरि
4. सर्वाधिकारवादी
Answer
1302

Question 3 :

जापान में शोगुनों का पतन कब हुआ?


1. 1867 ई० में
2. 1868 ई० में
3. 1872 ई० में
4. 1894 ई० में
Answer
1303

Question 4 :

मेजी सरकार ने सर्वप्रथम देश में किस ओर ध्यान दिया?


1. आर्थिक विकास
2. औद्योगिक विकास
3. उद्योगों की स्थापना
4. कपड़ा व्यापार
Answer
1304

Question 5 :

जापान में रेलवे लाइन बिछाने का कार्य कब आरम्भ हुआ?


1. 1892 ई० में
2. 1872 ई० में
3. 1897 ई० में
4. 1894 ई० में
Answer
1305

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