एक बुढ़िया
कहीं एक बुढिया थी जिसका नाम नहीं था कुछ भी,
वह दिन भर खाली रहती थी काम नहीं था कुछ भी।
व्याख्या: किसी स्थान पर एक बुढिया रहती थी। वह दिनभर घर में यूँ ही बैठी रहती थी। उसके पास करने के लिए कुछ भी नहीं था।
काम न होने से उसको आराम नहीं था कुछ भी,
दोपहरी, दिन, रात, सबेरे शाम नहीं थी कुछ भी।
व्याख्या: बुढिया के पास कोई काम नहीं था, इसलिए वह हमेशा बेचैन रहती थी। इसलिए उसे आराम नहीं था। कोई काम रहने के कारण उसके लिए सुबह, दोपहर, शाम और रात सब बराबर थे।
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